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Saturday, September 18, 2010

शिष्यता के सात सूत्र

शिष्यता के सात सूत्र


भगवत्पाद शंकराचार्य ने “शिष्य”, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं, जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-

अन्तेश्रियै वः – जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|

कर्तव्यं श्रियै नः – जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|

सेव्यं सतै दिवौं च – जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|

ज्ञानामृते वै श्रियं – जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता ही रहता हैं|

[purle] हितं वै हृदं – जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता ही रहता हैं|

गुरुर्वे गतिः – गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना ही अपना कर्तव्य समझता हो|

इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|

-मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान

Sunday, July 25, 2010

कृतज्ञता

कृतज्ञता

दिव्य महापुरुष जब अपने पंचभौतिक देह को त्याग कर परलोक गमन करते हैं, उस समय उनके शेष बचे हुए कार्यों को पूर्णता शिष्यों द्वारा ही दी जाती हैं! उनके द्वारा समाज को दिए गए ज्ञान और चेतना को विस्तार देना शिष्यों का ही कर्तव्य होता हैं! गुरु दक्षिणा के रूप में शिष्यों की अग्नि परीक्षा की घडी होती हैं! भगवन बुद्ध के बाद उनके शिष्य आनंद नें उनके ज्ञान को विश्व में साकार किया, जिससे आज संसार का एक बड़ा भाग बौद्ध धर्म की उदातता से अभिभूत हैं! इसी तरह परमहंस श्री रामकृष्ण देव को स्वामी विवेकनानंद ने ही इतिहास पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित करके अपनी गुरु-दक्षिणा पूरी की!

भगवतपाद पूज्य गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ने अपने पचास वर्षों के अंतराल में जो साधनात्मक चिन्तन नए समाज के निर्माण के लिए दिया हैं, उसका उत्तरार्द्ध शेष भाग अब शिष्यों के ऊपर कर्तव्य रूप में स्वतः ही आ गया हैं! पूज्य गुरुदेव के हजारों-हजारों शिष्य निश्चित रूप से उनके स्वप्नों को साकार करने के लिए सन्नद्ध हैं! तीनों गुरूजी के निर्देशन में अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार अब समस्त विश्व को नयी चेतना देकर, अपना स्वर्णिम इतिहास स्वयं लिखेगा तथा पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के उदाततम साधनात्मक चिन्तन से समस्त विश्व को आलोकित करेगा!

!! श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः !!

!! श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः !!

जय गुरुदेव!

कल यानि 03 जुलाई के दिन ही 1998 का प्रभात वह अशुभ काल लेकर आया थ, जब हम सभी गृहस्थ शिष्यों से पूज्यपाद सदगुरुदेव इतने दूर चले गए कि हम उन्हें चाहकर भी देख नहीं सके.....

उन्हें देखना अब हमारी इच्छाओं पर नहीं वरन उनके स्वयं की इच्छाओं पर ही निर्भर हो गया हैं!

कईयों ने कहा :

हमारा दुर्भाग्य थ कि हम उन्हें देख नहीं सकें, कोई अपने किस्मत को कोसता हैं तो कोई किसी अन्य कारण को! मगर सदगुरुदेव के प्रवचनों को सुना जाए तो हकीकत यह थी कि सदगुरुदेव अपने सन्यासी शिष्यों से भी हमारी ही तरह ही प्रेम करते थे, और उनके प्रति अपने फर्ज का पालन करने हेतु वे सन्यास में जाने के लिए व्यग्र थे, और अपने गुरु के प्रति उनका अनन्य प्रेम भी था.....

आने वाले साल डेढ़ साल में क्या घटित होने वाला हैं, वो मेरे और मेरे गुरु के बीच हैं, मैं उसमें आपको भागीदार बना ही नहीं सकता, समय आएगा तब मैं बताऊंगा कि मैं क्या कहना चाहता थ!

-सदगुरुदेव (राज्याभिषेक दीक्षा 01 जनवरी 1997)

और ठीक इसके डेढ़ साल बाद 03 जुलाई 1998 को सदगुरुदेव ने सिद्धाश्रम गमन किया!

प्रश्न यह नहीं हैं कि सदगुरुदेव से हम मिल सकें या नहीं, हम उन्हें देख सकें, समझ सकें, या जो भी हमारा स्वयं का चिन्तन हैं.....

प्रश्न सिर्फ यह हैं कि हमने सदगुरुदेव से प्रेम किया क्या? और यदि प्रेम किया हैं तो इस प्रेम के लिए क्या किया हैं? उन्होंने हमें सब दिया हैं, कई बार न जाने हमारे लिए क्या-क्या सहा हैं......

मगर हमने उन्हें क्या दिया, साधनाएं, मंत्र-जप, ध्यान-धारणा, समाधी ये तो हमारे स्व के विकास के लिए थी, हमने उनके स्वप्न उनके उद्देश्य उनके ख्वाब को कितना पूरा किया?

उनसे आशीर्वाद चाहिए तो सबने हाथ बढ़ा दिए और उनके कार्य के लिए मौका पड़ा तो हमने ये कह कर हाथ खींच लिया कि मैं नहीं कर सकता....

आओ! हम कार्य करें, क्यूंकि इतिहास उन्हें याद करेगा जो गुरु के लिए कुछ कर गए....

वक्त आएगा, आज से 100-500 साल बाद आप किस रूप में याद आना चाहते हैं......

कृष्ण का नाम लेने वाले उद्धव को लोग और इतिहास भूल गया, मगर अर्जुन को आज भी इतहास याद करता हैं....

मेरी ओर से बस इतना ही निवेदन हैं कि :

समय का पहिया अत्यंत तीव्र वेग से गतिशील हैं, और समय इतना भी नहीं बचा कि साधनाओं को करके भी हम जो चाह रहे हैं, वह कर जायेंगी, सोचिये..... अगर अंत में आपके हाथ खाली रहे, आप मृत्यु से अमृत्यु की ओर न जा सके, तो फिर जीवन का सार क्या होगा?

हनुमान ने सिर्फ अपने गुरु का कार्य कर वह प्राप्त कर लिए जो इतिहास का एक अद्वितीय पक्ष हैं,

राज्याभिषेक दीक्षा, और दिव्य महोत्सव चंडीगढ़ (गुरु पूर्णिमा 1996) के शिविर की सी.डी. को अवश्य देखना....

कब तक यूँ जीवन को घसीटते रहोगे, मेरे भाई. तुम राजहंस हो, अब तो यह बगुले का जीवन छोड़ दो.

आगे उनकी इच्छा.....

आप सभी का छोटा भाई


Monday, March 29, 2010

मै छुपाना जानता ...

मै छुपाना जानता तो जग मुझे साधू समझता ,सत्रु मेरा बन गया छल रहित व्यव्हार मेरा || by (जीतेन्द्र प्रताप सिंह)


Witness that you are not the body.
Witness that you are not the mind.
Witness that you are only the witness.

Loving Memories jitu deaths announcement
30 march !2009..8:14AM
If tears could build a stairway, And memories were a lane. I would walk right up to heaven, To bring you home again............
30 march !2009..8:14AM
word of jitu........
Mratyu Jeevan ka Antim Satya hai Jise main pa chuka hoon..yahi.Satya hai !!!!!mrityu ......jise koi badal nahi sakta!!!