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Sunday, July 25, 2010

कृतज्ञता

कृतज्ञता

दिव्य महापुरुष जब अपने पंचभौतिक देह को त्याग कर परलोक गमन करते हैं, उस समय उनके शेष बचे हुए कार्यों को पूर्णता शिष्यों द्वारा ही दी जाती हैं! उनके द्वारा समाज को दिए गए ज्ञान और चेतना को विस्तार देना शिष्यों का ही कर्तव्य होता हैं! गुरु दक्षिणा के रूप में शिष्यों की अग्नि परीक्षा की घडी होती हैं! भगवन बुद्ध के बाद उनके शिष्य आनंद नें उनके ज्ञान को विश्व में साकार किया, जिससे आज संसार का एक बड़ा भाग बौद्ध धर्म की उदातता से अभिभूत हैं! इसी तरह परमहंस श्री रामकृष्ण देव को स्वामी विवेकनानंद ने ही इतिहास पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित करके अपनी गुरु-दक्षिणा पूरी की!

भगवतपाद पूज्य गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ने अपने पचास वर्षों के अंतराल में जो साधनात्मक चिन्तन नए समाज के निर्माण के लिए दिया हैं, उसका उत्तरार्द्ध शेष भाग अब शिष्यों के ऊपर कर्तव्य रूप में स्वतः ही आ गया हैं! पूज्य गुरुदेव के हजारों-हजारों शिष्य निश्चित रूप से उनके स्वप्नों को साकार करने के लिए सन्नद्ध हैं! तीनों गुरूजी के निर्देशन में अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार अब समस्त विश्व को नयी चेतना देकर, अपना स्वर्णिम इतिहास स्वयं लिखेगा तथा पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के उदाततम साधनात्मक चिन्तन से समस्त विश्व को आलोकित करेगा!

1 comment:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई!
    - प्रतिभा सक्सेना

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